8वें वेतन आयोग को लेकर सरकारी कर्मचारियों, पेंशनभोगियों और कर्मचारी संगठनों के बीच इस समय सबसे बड़ी चर्चा इसी नए नियम को लेकर हो रही है कि महंगाई भत्ता यानी डीए को पूरे तौर पर शून्य से रीसेट करने का प्रस्ताव चल रहा है। अभी व्यवस्था यह है कि डीए प्रतिशत कई वर्षों तक लगातार बढ़ता है और फिर जब यह 50 प्रतिशत पार कर जाता है तब इसको मूल वेतन में जोड़ा जाता है। इसी वजह से मूल वेतन बढ़ने की गति बहुत धीमी रहती है। लेकिन नए प्रस्ताव में महंगाई भत्ता शून्य से शुरू होगा और नियमित अंतराल पर जोड़ते हुए जब यह तय सीमा पर पहुंचेगा तो तुरंत मूल वेतन में जुड़ जाएगा। इसका सबसे बड़ा असर यह होगा कि मूल वेतन तेज़ी से बढ़ेगा और इसी वजह से भत्तों, घर किराया भत्ता, यात्रा भत्ता और अन्य सभी लाभों में तेज़ उछाल देखने को मिलेगा। पेंशनभोगियों पर भी इसका असर पड़ेगा क्योंकि पेंशन हमेशा मूल वेतन के आधार पर तय होती है। इस बदलाव को अब तक का सबसे बड़ा वेतन क्रम परिवर्तन माना जा रहा है।

कब से लागू होने की संभावना है यह शून्य रीसेट मॉडल?
सूत्रों के अनुसार 8वें वेतन आयोग की शर्तों को तय करने की प्रक्रिया आगामी वर्ष में पूरी की जा सकती है और इसका प्रभाव संभवतः अगले वर्ष की पहली जनवरी से प्रभावी किया जा सकता है। यदि यह मॉडल स्वीकार कर लिया जाता है तो सबसे बड़ा अंतर यह होगा कि सभी कर्मचारियों का वर्तमान महंगाई भत्ता शून्य कर दिया जाएगा और नई गणना फिर से शुरू होगी। इससे महंगाई भत्ता प्रतिशत छोटी अवधि में ही तेजी से ऊपर जाएगा और तय स्तर पर पहुँचते ही यह मूल वेतन में विलय हो जाएगा। अब तक जो इंतजार वर्षों तक रहता था वह काफी कम समय में ही पूरा हो सकेगा। इसी वजह से इस प्रस्ताव को कर्मचारी संगठन, पेंशनभोगी समूह तथा वित्त विभाग अत्यंत गंभीरता से देख रहे हैं। यह परिवर्तन केवल डीए प्रतिशत में उतार-चढ़ाव नहीं बल्कि पूरे वेतन ढाँचे में आमूलचूल बदलाव का संकेत माना जा रहा है।
मूल वेतन में कितना उछाल देखने को मिल सकता है?
यदि शून्य रीसेट नियम लागू कर दिया जाता है तो महंगाई भत्ते के विलय की अवधि कम हो जाएगी। इससे मूल वेतन में तेज़ गति से बढ़ोतरी देखने को मिलेगी। अभी महंगाई भत्ता प्रतिशत 50 पार करने में कई बार दो वर्ष से अधिक का समय लग जाता है, इसी वजह से मूल वेतन में बढ़ोतरी धीमी लगती है। लेकिन शून्य रीसेट नियम आने पर महंगाई भत्ता हर कुछ माह में तेज़ दर से बढ़ते हुए छोटे-छोटे अंतराल में ही मूल वेतन में विलय हो सकता है। इस प्रकार कर्मचारियों की वास्तविक आय तथा पेंशनभोगियों की मासिक पेंशन दोनों में उल्लेखनीय छलांग आने की संभावना बन जाएगी। यही कारण है कि इस मॉडल को वेतन व्यवस्था के बदलाव का सबसे तीव्र स्वरूप कहा जा रहा है।
क्या इस नियम से सरकार पर खर्च का भार बढ़ेगा?
विशेषज्ञों का कहना है कि इस नियम से एक तरफ कर्मचारियों को सीधा लाभ मिलेगा, वहीं दूसरी तरफ सरकार के बजट पर कुछ अतिरिक्त भार भी पड़ सकता है, क्योंकि मूल वेतन अधिक होते ही सभी भत्तों की राशि बढ़ जाएगी। लेकिन समर्थक पक्ष का यह भी तर्क है कि इससे पूरी व्यवस्था अधिक सरल, स्पष्ट और लम्बी अवधि की योजना के लिये उपयुक्त हो जाएगी। आज की व्यवस्था में महंगाई भत्ता वर्ष दर वर्ष बढ़ता है और एक निश्चित स्तर पार करके ही मूल वेतन में विलय होता है, जिससे गणना में असमानता और अस्थिरता बनी रहती है। शून्य रीसेट मॉडल से यह अनिश्चितता समाप्त हो सकती है।
कर्मचारियों और पेंशनभोगियों को क्या समझना चाहिए?
यदि आप केंद्रीय कर्मचारी हैं या पेंशनभोगी हैं तो इस शून्य रीसेट प्रस्ताव पर ध्यान बनाए रखें क्योंकि यह सिर्फ एक सामान्य बढ़ोतरी नहीं बल्कि पूरे वेतन ढाँचे को बदलने वाली योजना है। यह सिर्फ महंगाई भत्ते का सरल संशोधन नहीं है बल्कि ऐसा मॉडल है जिसमें मूल वेतन लगातार छोटे-छोटे अंतराल पर बढ़ सकता है। ऐसा होने पर पेंशनभोगियों को भी बड़ा लाभ मिलेगा क्योंकि उनकी पेंशन का निर्धारण हमेशा मूल वेतन पर आधारित होता है। आने वाले महीनों में जब इस प्रस्ताव पर अंतिम निर्णय होगा तभी इसकी वास्तविक संरचना सामने आएगी, लेकिन संकेत बिल्कुल स्पष्ट हैं – यदि यह मॉडल मान्य हो जाता है तो 8वां वेतन आयोग भारत में वेतन निर्धारण के इतिहास में सबसे बड़ा मोड़ साबित हो सकता है।
